Tuesday, August 26, 2008

ऐसा लगा....


एक सुहानी सांझ जब छाए थे आसमान में तारे ,

मैं हुआ तुम्हारी यादों से रूबरू ,

ऐसा लगा कि तुम पास हो मेरे,

ऐसा लगा कि तुम कर रही हो मुझसे बातें,

ऐसा लगा कि दूर हो कर भी कितने पास हैं हम,

और पास हो कर भी कितने दूर ,

ऐसा लगा कि तुमसे ही है हर खुशी मेरी

ऐसा लगा कि तुमसे ही है ये जिंदगी मेरी ,

न जाने कब हुई सांझ से रैन ,

और न जाने कब आंखों में ही हो गई भोर,

अब न तुम थी न तुम्हारा कोई निशाँ,

बस पड़ी रह गई थी मेरे मन के आँगन में ओस ,

उस ओस को छुआ तो ऐसा लगा जैसे आंसू हैं तुम्हारे ,

ऐसा लगा कि जैसे मैं जलता हूँ ,

वैसे तुम भी तो जलती होगी,

ऐसा लगा कि इस जलन में भी एक खुशी है,

जो जल-जल कर तुमको भी मिलती होगी,

ऐसा लगा कि जब हम दोनों का एक सा हाल है ,

तो कब तक रह सकते हैं दूर ??

ऐसा लगा कि आज ही हम फिर मिलेंगे ,

आज ही तुम आओगी ज़रूर ।

Sunday, August 24, 2008

याद तुम आती रहीं.....


आज सावन की बूंदों ने बरस कर फिर तेरी यादें ताज़ा कर दी ..........................




जब सावन की बूँदें ,मेरी आखों से नमी चुराती रहीं ,
तब याद तुम आती रहीं,
बस याद तुम आती रहीं !

जब काली रातें ,तेरी यादों की रौशनी से सितारों की चमक चुराती रहीं ,
तब याद तुम आती रहीं,
बस याद तुम आती रहीं !


जब वक्त के दिए ज़ख्मो की टीस,मेरी आंखों को रुलाती रहीं,
तब याद तुम आती रहीं,
बस याद तुम आती रहीं !


जब बनकर हकीकत की परछाइयां,तुम मेरे ख्वाबों में आती रहीं,
तब याद तुम आती रहीं,
बस याद तुम आती रहीं !


तुम दूर हो इसलिए कुछ कह नहीं सकता,
जब आओगी पास ,तो ये तारे भी देंगे गवाही,
कि कैसे तुम्हारी यादें पल पल मुझे तडपती रहीं
कैसे तुम हर पल मुझे सताती रहीं
जब याद तुम आती रहीं,
बस याद तुम आती रहीं !