कागज़ और कलम के दर्मियाँ एक नज़्म कहीं खो सी गई है ,ढूँढने कि लाख कोशिश कि पर वो मिलती ही नहीं !!आज ज़िन्दगी के इस सफ्हे पर अपना पता लिखे देता हूँ ..शायद वो ही मुझे ढूंढ ले ........
एक कैनवस पर बिखरे रंगों की तरह ,
लव्ज़ तो मिल जाते हैं ...
पर वो नज़्म नहीं मिलती !!!!!!
मेरी डायरी के कोरे सफहों में,
सोये ख़याल तो मिल जाते हैं ...
पर वो नज़्म नहीं मिलती !!!!!!
मेरी कलम को ख्वाबों में ,
कुछ अधूरे मिसरे तो मिल जाते हैं ....
पर वो नज़्म नहीं मिलती !!!!!!!
काश नज्मों का भी कोई पता होता ,
की जब चाहे उनसे मिल पाते हम !!
अब शायद वो नज़्म ही मुझे ढूंढ लेगी कहीं ...
लापता हूँ आजकल अपने ही शहर में...
अपना पता जेब में लिए फिरता हूँ !!!!!
Sunday, August 7, 2011
Monday, February 14, 2011
इश्क ...इबादत
दिल सूफी होने लगा है,आशाओं के दरिया को उम्मीदों का साहिल मिल गया हो जैसे! हर तरफ इश्क बरसता सा दिखता है !मैं तेरे इश्क में दीवाना हुआ हूँ या तू मेरे इश्क में,मालूम ही नहीं होता !कभी सोचा न था कि दीवानगी में भी कोई फ़न होगा, नज़रें बस तेरे सजदे में झुकती हैं,कान बस तेरा ही नाम सुनते हैं,होंठ जो कभी खुलते हैं तो लव्ज़ तेरी इबादत में निकली दुआ बन जाते हैं!
क्या नाम दूँ इस दीवानगी को ....इश्क ...इबादत ?
ना मेरी कोई हस्ती,
न मेरा कोई ठौर ठिकाना,
मैं आशिक हुआ तेरा,
दिल मेरा मलंग मस्ताना !!!!!!
इश्क इबतादत या है इबादत इश्क ?
तू मैं है या हूँ मैं तू ?
हुआ है कौन किसका दीवाना ?
ये भेद मैंने न जाना !!!!
खुमारी तेरे इश्क कि,
छाई रहती है आँखों पर
लगे दीवानी मुझे सारी ये दुनिया ...
पर लोग कहें मुझे तेरा दीवाना !!!!!!!!
क्या नाम दूँ इस दीवानगी को ....इश्क ...इबादत ?
ना मेरी कोई हस्ती,
न मेरा कोई ठौर ठिकाना,
मैं आशिक हुआ तेरा,
दिल मेरा मलंग मस्ताना !!!!!!
इश्क इबतादत या है इबादत इश्क ?
तू मैं है या हूँ मैं तू ?
हुआ है कौन किसका दीवाना ?
ये भेद मैंने न जाना !!!!
खुमारी तेरे इश्क कि,
छाई रहती है आँखों पर
लगे दीवानी मुझे सारी ये दुनिया ...
पर लोग कहें मुझे तेरा दीवाना !!!!!!!!
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