कभी आईने तलाशे ...कभी अंधेरों से अपने अक्स का पता पूछा . ढूंढते रहे अपने आप को हम हर पल हर जगह । ज़िन्दगी एक तलाश सी लगने लगी है अब .........
एक अजीब सी कश्म्कश है ये ज़िन्दगी ।।।।
जो पास होता है उस से मिलते नहीं....
जो होता है दूर ,होती है उसकी आरज़ू !!!!
निकल पड़े हैं फिर से हम एक सफ़र पर...
कि कहीं पहुंच कर खुद तक पहुँच सकें ।।।।
आजकल आईने में कोई और शख्स नज़र आता है!!!!!!!!
कभी चले हम तन्हा ...
और कभी चले हम होकर भीड़ में शामिल ....
अपने तारुफ्फ़ (परिचय) को तलाशते रहे हर शहर हर मंजिल!!!!
ना सोचा था...
कि इतना भी मुश्किल हो सकता है ...खुद को खुद से मिलवाना
जो मिले खुद से हम....
तो नाम पूछ बैठे!!!