Sunday, October 4, 2015

काश की ये ज़िन्दगी भी एक नज़्म होती ...

आज एक अरसे बाद वो शायर फिर लौट आया है, ज़िन्दगी की आपा धापी का स्वाद चखकर ! ज़िन्दगी का हर ऐशो आराम उसे  किसी भी नज़्म की सादगी के आगे फीका सा लगा और वह सोचने लगा "काश की ये ज़िन्दगी भी  एक नज़्म होती .. "




काश की ये ज़िन्दगी भी  एक नज़्म होती .. 

छोटे बड़े मिसरों में 
गुज़र बसर होती 

आज को जीते हम आज ही  की तरह ..
कल  की न कोई फ़िक्र होती !!!!

लफ़्ज़ों को किसी धागे में पिरो लेते हम ...
ख्यालों की ना कोई उम्र होती !!!

खुदा की इबादत बन जाती हर एक बात ...
ना दुआएं कोई बे-असर  होती !!!

काश की ये ज़िन्दगी भी  एक नज़्म होती ..

मर कर भी कभी न मरते हम ..
मौत भी अपनी अमर होती !!!!! 

1 comments:

kuntala said...

mil gaya wo jo khoya tha
wo bin bole bolne wala
wo bina hanse hansane wala
chupa hua badlon mein chaand sa roshan
wo blogger.. mera bhai
apna number batana jaara 😈