Tuesday, October 8, 2019

बारिश !!

आज जी करता है यूँ ,
कि सौंप दूँ खुद को ,
रिमझिम बरसती बारिश के आगोश में ,
और ओढ़ लूँ बूँदों की चादर !

आखों में भर लूँ बूंदों का सुरमा !
और फिर से रवाँ कर लूँ,
अपने बचपन  को पल भर !

फिर से,
मासूमियत भरी आखों  से देख सकूँ,
इस दुनिया को!
और फिर से शुरू हो जाये ,
कागज़ की कश्तियों का  सफ़र !

कायम हो जाए फिर से,
बेफिक्रियों का आलम,
भीग जाने की फ़िक्र भी,
हो जाये बे-असर !!

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