इश्क ...इबादत
दिल सूफी होने लगा है , आशाओं के दरिया को उम्मीदों का साहिल मिल गया हो जैसे ! हर तरफ इश्क बरसता सा दिखता है ! मैं तेरे इश्क में दीवाना हुआ हूँ या तू मेरे इश्क में , मालूम ही नहीं होता ! कभी सोचा न था कि दीवानगी में भी कोई फ़न होगा , नज़रें बस तेरे सजदे में झुकती हैं , कान बस तेरा ही नाम सुनते हैं , होंठ जो कभी खुलते हैं तो लव्ज़ तेरी इबादत में निकली दुआ बन जाते हैं ! क्या नाम दूँ इस दीवानगी को .... इश्क ... इबादत ? ना मेरी कोई हस्ती , न मेरा कोई ठौर ठिकाना , मैं आशिक हुआ तेरा , दिल मेरा मलंग मस्ताना !!!!!! इश्क इबतादत या है इबादत इश्क ? तू मैं है या हूँ मैं तू ? हुआ है कौन किसका दीवाना ? ये भेद मैंने न जाना !!!! खुमारी तेरे इश्क कि , छाई रहती है आँखों पर लगे दीवानी मुझे सारी ये दुनिया ... पर लोग कहें मुझे तेरा दीवाना !!!!!!!!