एक सुहानी सांझ जब छाए थे आसमान में तारे ,
मैं हुआ तुम्हारी यादों से रूबरू ,
ऐसा लगा कि तुम पास हो मेरे,
ऐसा लगा कि तुम कर रही हो मुझसे बातें,
ऐसा लगा कि दूर हो कर भी कितने पास हैं हम,
और पास हो कर भी कितने दूर ,
ऐसा लगा कि तुमसे ही है हर खुशी मेरी
ऐसा लगा कि तुमसे ही है ये जिंदगी मेरी ,
न जाने कब हुई सांझ से रैन ,
और न जाने कब आंखों में ही हो गई भोर,
अब न तुम थी न तुम्हारा कोई निशाँ,
बस पड़ी रह गई थी मेरे मन के आँगन में ओस ,
उस ओस को छुआ तो ऐसा लगा जैसे आंसू हैं तुम्हारे ,
ऐसा लगा कि जैसे मैं जलता हूँ ,
वैसे तुम भी तो जलती होगी,
ऐसा लगा कि इस जलन में भी एक खुशी है,
जो जल-जल कर तुमको भी मिलती होगी,
ऐसा लगा कि जब हम दोनों का एक सा हाल है ,
तो कब तक रह सकते हैं दूर ??
ऐसा लगा कि आज ही हम फिर मिलेंगे ,
आज ही तुम आओगी ज़रूर ।