Monday, February 14, 2011

इश्क ...इबादत

दिल सूफी होने लगा है,आशाओं के दरिया को उम्मीदों का साहिल मिल गया हो जैसे! हर तरफ इश्क बरसता सा दिखता है !मैं तेरे इश्क में दीवाना हुआ हूँ या तू मेरे इश्क में,मालूम ही नहीं होता !कभी सोचा था कि दीवानगी में भी कोई फ़न होगा, नज़रें बस तेरे सजदे में झुकती हैं,कान बस तेरा ही नाम सुनते हैं,होंठ जो कभी खुलते हैं तो लव्ज़ तेरी इबादत में निकली दुआ बन जाते हैं!
क्या नाम दूँ इस दीवानगी को ....इश्क ...इबादत ?



ना मेरी कोई हस्ती,
मेरा कोई ठौर ठिकाना,
मैं आशिक हुआ तेरा,
दिल मेरा मलंग मस्ताना !!!!!!


इश्क इबतादत या है इबादत इश्क ?
तू मैं है या हूँ मैं तू ?
हुआ है कौन किसका दीवाना ?
ये भेद मैंने जाना !!!!


खुमारी तेरे इश्क कि,
छाई रहती है आँखों पर
लगे दीवानी मुझे सारी ये दुनिया ...
पर लोग कहें मुझे तेरा दीवाना !!!!!!!!