Monday, September 22, 2008

कल रात सारी ...............

किताब ऐ माज़ी के वरक पलटते-पलटते ,इक भूली हुई नज़्म से फिर मुलाकात हो गई ,उसने पूछा कैसे हो ??मुझे याद करते हो न ??मेरे मुंह से हाँ ही निकल पाई थी की वो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे मेरे माज़ी में ले आई !ज़रा धुंध थी ,पर धीरे-धीरे सब साफ़ हो रहा था ,मैंने ख़ुद को कंप्यूटर साइंस की क्लास में देखा ,प्रोफ़ेसर साहब लेक्चर दे रहे थे , और मैं एक तरफा प्यार पर रिसर्च कर रहा था!अपनी डायरी में इस नज़्म को लिख भी रहा था !ख़ुद में खोया देखकर प्रोफ़ेसर साहब ने चॉक फैंककर मारा था और ये नज़्म वहीँ अधूरी छूट गई !ये नज़्म आज भी अधूरी है या शायद ये अधूरी ही मुकम्मल है ..............................................

कल रात सारी,

तेरे ख्यालों में गुज़री ,

नींद के कुछ कतरे आंखों से गुज़रे ,तो ख्वाबों में भी तुमको पाया !!!!

ख्यालों में भी तुम और ख्वाबों में भी तुम ही थी ,

ये जानकर तुमको भी यकीं न आएगा ,

जो जानेगी दुनिया इसको तो ये आशिक दीवाना कहलायेगा !!!

हाँ दीवाना हूँ तो दीवाना कहलाना क्या बुरा है ??

आंखों की नींद है गुम , जाने ये क्या माज़रा है ??

क्या इसी का नाम मोहब्बत है??

अगर हाँ ,तो मैं तुमसे दीवानावार मोहब्बत करता हूँ

ये भी सच है की तुमसे कहने से डरता हूँ !

पर क्या तुमने कभी मेरी आंखों में इस मोहब्बत को नहीं देखा ??

नही देखा, कि ये तुम्हारे अन्दर बसी उस लड़की से प्यार करती हैं ,जिसकी पहचान सादगी है ,

जिसकी आंखों में ऊंचा उड़ने के ख्वाब जगमाते हैं !!

खैर तुम मुझसे मोहब्बत करो न करो,

मैंने तुमसे कि है मोहब्बत !!

जैसे साहिल को छूकर लहरें गुम हो जाती हैं कहीं ,

वैसे ही तुम भी मेरे मन को छू कर ,गुम हो गई हो !

तुम नज़रों से दूर सही , पर दिल से दूर नहीं ,

जब चाहूँ मैं ,मिल सकता हूँ तुमसे मेरे ख्वाबों -ख्यालों में .......

कल रात सारी,
तेरे ख्यालों में गुज़री ,
नींद के कुछ कतरे आंखों से गुज़रे ,तो ख्वाबों में भी तुमको पाया..........................................

Sunday, September 14, 2008

हाय रे इंसानियत !!!!!!!!



एक शहर धमाकों से फिर दहला है,फिर चंद इंसानों ने इंसानियत को फिर शर्मसार किया है ......क्या हमारी ज़िन्दगी उन्हीं लोगों के हाथ कठपुतली बन गई है ???

धुआं सा उठता दीखता है,

कहीं तो आग ज़रूर लगी होगी ??

सवाल ये नहीं,


की घर तेरा जला या मेरा ??


पर हर ज़ख्म की टीस पर इंसानियत कितना रोई होगी??




फिर से दहली इंसानियत ,


दहशतगर्दों का मकसद क्या रहा होगा ??


सवाल ये नहीं,


की वो कौन था ??


पर इंसानियत को शर्मसार करने वाला, वो भी तो कभी इन्सान रहा होगा ??





हाय रे इंसानियत,तुझे अब इंसान से ही है खतरा,


जाने तेरा नसीब क्या होगा ??


सवाल ये नही,


कि कौन मरा ,या कौन ज़ख्मी हुआ ??


पर ए इंसान किसी के ज़ख्मो को महसूस कर , दर्द तेरे सीने भी ज़रूर होगा !!!!!!!!!


Monday, September 8, 2008

रास्ता ..................






कई सालों बाद ,आज मुड़कर देखा मैंने ,
एहसास हुआ की बहुत दूर आ गया हूँ मैं ,
मेरा गाँव बहुत पीछे रह गया है ,अब तो आंखों से भी ओझल हो गया है ,
अपने आप को देखा तो पाया कि ये शहर मेरी रग रग में बस गया है !
मतलब,पैसा,फायदा ,नुक्सान,और घमंड ,मेरी पाँच इन्द्रियां बन गए हैं !
अब तो मैं बस में किसी बुजुर्ग को खड़ा देखकर भी अपनी सीट नही छोड़ता!
ऑफिस को देर न हो जाए ,इसलिए किसी अंधे को सड़क पार नहीं करवाता !
और न ही किसी गिरे हुए को रास्ते से उठता हूँ ,सोचता हूँ इससे क्या फायदा होगा मुझको ?
अपने घमंड को आंच न आए ,इसलिए किसी भी छोटी बात पर झगड़ लेता हूँ !
अब किसी कि मदद करने के लिए ,कीमत मांगने में भी हिचकिचाहट नही होती मुझको !
हर बात को फायदे नुक्सान में तोलने लगा हूँ मैं !

मैं आया तो था इस शहर में बसने को कभी,
पर मालूम न था कि ये शहर ही मुझमे बस जाएगा ,
सोचता हूँ वापस चला जाऊं ,
पर गाँव जाने के सारे रास्ते बंद से दीखते हैं ,
क्या तुम्हें कोई रास्ता मालूम है ??मैं पैसे देने को तैयार हूँ !