Friday, January 23, 2009

एक सफहा मेरी डायरी का.....

एक सफहा मेरी डायरी का,
कुछ नाराज़ है मुझसे ,
वो मेरी एक नज़्म छुपाये बैठा है ,
जैसे जादुई स्याही से राज़ छुपाये जाते हैं !!!!!

हर तरकीब आज़मा ली उसे मनाने की,
और अपनी नज़्म वापस हथियाने की ,
पर सारी कोशिशें बेकार हुईं ,
जैसे तूफानों में नशेमन बिखर जाते हैं !!!!

शायद नज़रों का धोखा है ,
या फिर कोई छलावा,
मैं कोरे कागज़ को ही नज़्म समझे बैठा हूँ ,
जैसे सहराओं में सराब* नज़र आ जाते हैं !!!!


*सराब ->दृष्टि भ्रम

Saturday, January 3, 2009

अनामिका-२

घने अंधेरे और तन्हाई में भी,
वो नीम का पेड़ मुस्कुराता है !!!!
कल एक जुगनू आया था उसे रौशन करने !!!!!!!!

आंखों ने रतजगों से आशिकी कर ली,
खुली आंखों के ख्वाब शायद सच हो जायें !!!!
नींद फ़िर गुमशुदा है कल से !!!!

बूढे पीपल पर धागा बाँध कर,
तुझे पाने की मन्नत की थी !!!!
कच्चे धागे में बंधी पक्की मन्नत आज खुल गई !!!!!!

तेरी आंखों से मेरी आँखें मिलने का लम्हा,
चुरा कर संजो लिया था मैंने!!!!
आज वक्त ने चोरी करते पकड़ लिया मुझको !!!!!!!!

कभी एक लम्हा सदियों सा लगा,
कभी कई सदियाँ एक लम्हे में गुजार दी !!!!
ये वक्त भी बड़ा मूडी है !!!!!!!!!