सहर
तुम जो ज़रा और देर रुक जातीं ,तो सहर हो ही जाती , हम दोनों आजाद हो जाते इस काली स्याह रात की गिरह से , खैर जाने भी दो , रात ही तो है, रात का काला अँधेरा ही तो है , तेरे बगैर मुझे सहर से क्या सरोकार, तेरे बगैर तो सबा भी लू लगती.
मेरी भी एक मधुशाला है ,यह बच्चन जी की मधुशाला की हाला का कतरा भर भी नही,फिर भी ये मेरी मधुशाला है .इसमे हर पीने वाले का स्वागत है ..हर उस दोस्त का स्वागत है जो इस जीवन मधुशाला को और जानना चाहता है ..मेरी मधुशाला एक प्रयास है ख़ुद को जानने का...उम्मीद है यह इस जीवन की कसौटी पर खरी उतरेगी.