इक रोज़ जब.....
इक रोज़ जब ज़िन्दगी से फिर हारा था मैं, तो मैंने मौत से मौत मांगी, मौत ने भी दुत्कारा मुझे और कहा, जियेगा यूँ ,तो तेरी ज़िन्दगी ही तुझे मारेगी, हो जाएगा तू बेबस इतना,कि तेरी हर हिम्मत भी हारेगी! मौत मांगे नही मिलती, मौत खैरात में नही बंटती, मौत सिर्फ़ मरने का नाम नही, एक शानदार मौत को भी जिया जाता है, जा,जाकर फिर से जी,हर पल को अपने आगोश में ले, हर पल ज़िन्दगी कि आंखों से आँखें मिला, जा कह दे उस ज़िन्दगी से,मैंने जीना सीख लिया है, तुझको तो मैं जीतूँगा एक दिन, और अपनी मौत को भी जी जाऊँगा !!!!!!!!!!