एक सफहा मेरी डायरी का.....
एक सफहा मेरी डायरी का, कुछ नाराज़ है मुझसे , वो मेरी एक नज़्म छुपाये बैठा है , जैसे जादुई स्याही से राज़ छुपाये जाते हैं !!!!! हर तरकीब आज़मा ली उसे मनाने की, और अपनी नज़्म वापस हथियाने की , पर सारी कोशिशें बेकार हुईं , जैसे तूफानों में नशेमन बिखर जाते हैं !!!! शायद नज़रों का धोखा है , या फिर कोई छलावा, मैं कोरे कागज़ को ही नज़्म समझे बैठा हूँ , जैसे सहराओं में सराब* नज़र आ जाते हैं !!!! *सराब ->दृष्टि भ्रम