Friday, January 23, 2009

एक सफहा मेरी डायरी का.....

एक सफहा मेरी डायरी का,
कुछ नाराज़ है मुझसे ,
वो मेरी एक नज़्म छुपाये बैठा है ,
जैसे जादुई स्याही से राज़ छुपाये जाते हैं !!!!!

हर तरकीब आज़मा ली उसे मनाने की,
और अपनी नज़्म वापस हथियाने की ,
पर सारी कोशिशें बेकार हुईं ,
जैसे तूफानों में नशेमन बिखर जाते हैं !!!!

शायद नज़रों का धोखा है ,
या फिर कोई छलावा,
मैं कोरे कागज़ को ही नज़्म समझे बैठा हूँ ,
जैसे सहराओं में सराब* नज़र आ जाते हैं !!!!


*सराब ->दृष्टि भ्रम

14 comments:

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर लगी आप की यह डायरी.
धन्यवाद

ताऊ रामपुरिया said...

वाह वाह. बेमिसाल रचना..इसका जवाब नही.
बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

योगेन्द्र मौदगिल said...

अच्छी कविता है भाई विक्रांत जी...

हरकीरत ' हीर' said...

एक सफहा मेरी डायरी का,
कुछ नाराज़ है मुझसे ,
वो मेरी एक नज़्म छुपाये बैठा है ,
जैसे जादुई स्याही से राज़ छुपाये जाते हैं !!!!!

Waa.....hh...! Bhot khooooob....!

Smart Indian said...

विक्रांत, वाह बहुत सुंदर!

Jimmy said...

good post jannab

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अवाम said...

बहुत ही सुंदर रचना है आपकी. गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें..

अवाम said...

बहुत ही सुंदर रचना है आपकी. गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें..

Krishna Patel said...

adbhut rachna.isi tarah hum tak apni rachnaye pahuchate rahe.

प्रदीप मानोरिया said...

लाज़बाब यथार्थ का प्रस्तुतीकरण

तरूश्री शर्मा said...

एक सफहा मेरी डायरी का,
कुछ नाराज़ है मुझसे ,
वो मेरी एक नज़्म छुपाये बैठा है ,
जैसे जादुई स्याही से राज़ छुपाये जाते हैं

बढ़िया नज्म है विक्रांत... जादुई स्याही से राज छिपाने की बात तो जैसे सोच के परे... उम्दा प्रतिमान और उपमान गढ़े हैं। हमेशा की तरह गहरी भावनाओं वाली कोमल सी नज्म।

बवाल said...

बेहतरीन बेशर्मा साहब क्या कहना डायरी का !

ताऊ रामपुरिया said...

होली की घणी रामराम.

sandhyagupta said...

Bahut khub likha hai.Badhai.