एक सफहा मेरी डायरी का.....
एक सफहा मेरी डायरी का,
कुछ नाराज़ है मुझसे ,
वो मेरी एक नज़्म छुपाये बैठा है ,
जैसे जादुई स्याही से राज़ छुपाये जाते हैं !!!!!
हर तरकीब आज़मा ली उसे मनाने की,
और अपनी नज़्म वापस हथियाने की ,
पर सारी कोशिशें बेकार हुईं ,
जैसे तूफानों में नशेमन बिखर जाते हैं !!!!
शायद नज़रों का धोखा है ,
या फिर कोई छलावा,
मैं कोरे कागज़ को ही नज़्म समझे बैठा हूँ ,
जैसे सहराओं में सराब* नज़र आ जाते हैं !!!!
*सराब ->दृष्टि भ्रम
कुछ नाराज़ है मुझसे ,
वो मेरी एक नज़्म छुपाये बैठा है ,
जैसे जादुई स्याही से राज़ छुपाये जाते हैं !!!!!
हर तरकीब आज़मा ली उसे मनाने की,
और अपनी नज़्म वापस हथियाने की ,
पर सारी कोशिशें बेकार हुईं ,
जैसे तूफानों में नशेमन बिखर जाते हैं !!!!
शायद नज़रों का धोखा है ,
या फिर कोई छलावा,
मैं कोरे कागज़ को ही नज़्म समझे बैठा हूँ ,
जैसे सहराओं में सराब* नज़र आ जाते हैं !!!!
*सराब ->दृष्टि भ्रम
Comments
धन्यवाद
बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
कुछ नाराज़ है मुझसे ,
वो मेरी एक नज़्म छुपाये बैठा है ,
जैसे जादुई स्याही से राज़ छुपाये जाते हैं !!!!!
Waa.....hh...! Bhot khooooob....!
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कुछ नाराज़ है मुझसे ,
वो मेरी एक नज़्म छुपाये बैठा है ,
जैसे जादुई स्याही से राज़ छुपाये जाते हैं
बढ़िया नज्म है विक्रांत... जादुई स्याही से राज छिपाने की बात तो जैसे सोच के परे... उम्दा प्रतिमान और उपमान गढ़े हैं। हमेशा की तरह गहरी भावनाओं वाली कोमल सी नज्म।