अनामिका-२

घने अंधेरे और तन्हाई में भी,
वो नीम का पेड़ मुस्कुराता है !!!!
कल एक जुगनू आया था उसे रौशन करने !!!!!!!!

आंखों ने रतजगों से आशिकी कर ली,
खुली आंखों के ख्वाब शायद सच हो जायें !!!!
नींद फ़िर गुमशुदा है कल से !!!!

बूढे पीपल पर धागा बाँध कर,
तुझे पाने की मन्नत की थी !!!!
कच्चे धागे में बंधी पक्की मन्नत आज खुल गई !!!!!!

तेरी आंखों से मेरी आँखें मिलने का लम्हा,
चुरा कर संजो लिया था मैंने!!!!
आज वक्त ने चोरी करते पकड़ लिया मुझको !!!!!!!!

कभी एक लम्हा सदियों सा लगा,
कभी कई सदियाँ एक लम्हे में गुजार दी !!!!
ये वक्त भी बड़ा मूडी है !!!!!!!!!

Comments

Smart Indian said…
कभी एक लम्हा सदियों सा लगा,
कभी कई सदियाँ एक लम्हे में गुजार दी !!!!
ये वक्त भी बड़ा मूडी है !!!!!!!!!

बहुत सही कहा है!
बूढे पीपल पर धागा बाँध कर,
तुझे पाने की मन्नत की थी !!!!
काछे धागे में बंधी पक्की मन्नत आज खुल गई !!!!

kya baat kahi hai....bahut khob..
बूढे पीपल पर धागा बाँध कर,
तुझे पाने की मन्नत की थी !!!!
काछे धागे में बंधी पक्की मन्नत आज खुल गई !!!!

बहुत लाजवाब. बडे दिनो बाद दिख रहे हैं आप ?

रामराम.
Vinay said…
बहुत ही अच्छा लिखा है


---
चाँद, बादल और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com
Very sensitive ,touching poem ,I must appriciate.I request you not to use BESHARMA as your title because it doesnt look good,its not and advice its a requestmind it.
yours
Dr.Bhoopendra

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