रात के सवाल....
एक और रतजगे की रात,कुछ एहसासों,कुछ जज्बातों की रात !एक दास्ताँ सुनाती रात,दिल के किसी कोने में बसी है वो रात,जो आज फिर मचल उठी है कुछ कहने को ......
कल रात ने आख़िर पूछ ही लिया,
इन नींद से अन्जान आंखों राज़ क्या है ?
इस बेचैनी,बेख्याली का सबब क्या है?
क्यों तू सहर तक तारों को ताकता रहता है ?
क्यों तू रोज़ मेरे भेजे ख्वाब लौटा देता है ?
वो तेरी कौन सी ऐसी मन्नत है,जिसके लिए मेरा हर तारा टूटने को तैयार है ?
मैं बोला,
सुन रात तेरे हर सवाल का जवाब इश्क है!
आंखों में बस कर जो नींद चुरा ले जाए वो इश्क है!
जो यार को ही रब बना दे वो इश्क है !
जिसके लिए हर ख्वाब को ठुकराया जा सके वो इश्क है !
तारे भी जिस मन्नत के लिए खुशी से टूट जाए वो इश्क है !!
कल रात ने आख़िर पूछ ही लिया,
इन नींद से अन्जान आंखों राज़ क्या है ?
इस बेचैनी,बेख्याली का सबब क्या है?
क्यों तू सहर तक तारों को ताकता रहता है ?
क्यों तू रोज़ मेरे भेजे ख्वाब लौटा देता है ?
वो तेरी कौन सी ऐसी मन्नत है,जिसके लिए मेरा हर तारा टूटने को तैयार है ?
मैं बोला,
सुन रात तेरे हर सवाल का जवाब इश्क है!
आंखों में बस कर जो नींद चुरा ले जाए वो इश्क है!
जो यार को ही रब बना दे वो इश्क है !
जिसके लिए हर ख्वाब को ठुकराया जा सके वो इश्क है !
तारे भी जिस मन्नत के लिए खुशी से टूट जाए वो इश्क है !!
Comments
रामराम.
बीते दिनों घर गया था और आने के बाद काम की वजह से काफी व्यस्त रहा ...अब नियमित रूप से पोस्ट लिखा करूँगा !!!!
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! आप बहुत सुंदर लिखते हैं!
शानदार भावपूर्ण रचना पढ़ कर आनंद आया.
उम्मीद है आगे से नियमित रूप से ब्लॉग जगत में छाये रहेंगे.
चन्द्र मोहन गुप्त
वाह जी वाह......!! इश्क मुबारक आपको ......!!!!!!
पर जनाब ....ये इश्क नहीं आसां इतना समझ लीजै .....!!!!
खूब कहा आपने ...के ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजै...इसी बात पर अर्ज़ है
इश्क है दरिया प्यार का ,वा की उलटी धार..
जो उबरा सो डूब गया ,और जो डूबा सो पार !!!!!!!!
सरल व संछेप ही सफलता का राज है । इसी में पुरी दुनिया सिमटी हुई है । पुरा पन्ना जिसे नही समझा सकता उसे एक शब्द ही समझा देता है ।
..
meri dil se aapko badhai ..
meri nayi poem par kuch kahiyenga to mujhe khushi hongi sir ji ..
www.poemsofvijay.blogspot.com
vijay
एक झलक तो दिखलाइये ।
Aabhar
Vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/07/window-of-my-heart.html
रामराम.
कितने दिन भी गुजर गए.. कोई खबर आपकी.
- सुलभ