बारिश !!
आज जी करता है यूँ ,
कि सौंप दूँ खुद को ,
रिमझिम बरसती बारिश के आगोश में ,
और ओढ़ लूँ बूँदों की चादर !
आखों में भर लूँ बूंदों का सुरमा !
और फिर से रवाँ कर लूँ,
अपने बचपन को पल भर !
फिर से,
मासूमियत भरी आखों से देख सकूँ,
इस दुनिया को!
और फिर से शुरू हो जाये ,
कागज़ की कश्तियों का सफ़र !
कायम हो जाए फिर से,
बेफिक्रियों का आलम,
भीग जाने की फ़िक्र भी,
हो जाये बे-असर !!
कि सौंप दूँ खुद को ,
रिमझिम बरसती बारिश के आगोश में ,
और ओढ़ लूँ बूँदों की चादर !
आखों में भर लूँ बूंदों का सुरमा !
और फिर से रवाँ कर लूँ,
अपने बचपन को पल भर !
फिर से,
मासूमियत भरी आखों से देख सकूँ,
इस दुनिया को!
और फिर से शुरू हो जाये ,
कागज़ की कश्तियों का सफ़र !
कायम हो जाए फिर से,
बेफिक्रियों का आलम,
भीग जाने की फ़िक्र भी,
हो जाये बे-असर !!
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