कई सालों बाद ,आज मुड़कर देखा मैंने ,
एहसास हुआ की बहुत दूर आ गया हूँ मैं ,
मेरा गाँव बहुत पीछे रह गया है ,अब तो आंखों से भी ओझल हो गया है ,
अपने आप को देखा तो पाया कि ये शहर मेरी रग रग में बस गया है !
मतलब,पैसा,फायदा ,नुक्सान,और घमंड ,मेरी पाँच इन्द्रियां बन गए हैं !
अब तो मैं बस में किसी बुजुर्ग को खड़ा देखकर भी अपनी सीट नही छोड़ता!
ऑफिस को देर न हो जाए ,इसलिए किसी अंधे को सड़क पार नहीं करवाता !
और न ही किसी गिरे हुए को रास्ते से उठता हूँ ,सोचता हूँ इससे क्या फायदा होगा मुझको ?
अपने घमंड को आंच न आए ,इसलिए किसी भी छोटी बात पर झगड़ लेता हूँ !
अब किसी कि मदद करने के लिए ,कीमत मांगने में भी हिचकिचाहट नही होती मुझको !
हर बात को फायदे नुक्सान में तोलने लगा हूँ मैं !
मैं आया तो था इस शहर में बसने को कभी,
पर मालूम न था कि ये शहर ही मुझमे बस जाएगा ,
सोचता हूँ वापस चला जाऊं ,
पर गाँव जाने के सारे रास्ते बंद से दीखते हैं ,
क्या तुम्हें कोई रास्ता मालूम है ??मैं पैसे देने को तैयार हूँ !
11 comments:
सोचता हूँ वापस चला जाऊं ,
पर गाँव जाने के सारे रास्ते बंद से दीखते हैं ,
क्या तुम्हें कोई रास्ता मालूम है ??मैं पैसे देने को तैयार हूँ !
अब विक्रान्त्जी आप इतने दूर आ चुके हैं की पैसे से तो कोई रास्ता
नही मिलने वाला !:) बहुत सटीक व्यंग है ! बहुत मजा आया, शुभकामनाए !
बहुत ही सुन्दर, गाव मे यह सब बाते नही होती, जो खुबिया शहर मे आप ने गिनवाई हे,
धन्यवाद एक बेहतरीन कविता के लिये.
"मैं पैसे देने को तैयार हूँ !"
बहुत खूब विक्रांत, सिद्ध करने का निराला अंदाज़!
बहुत शानदार कविता लिखी है आपने !
धन्यवाद !
हर बात को फायदे नुक्सान में तोलने लगा हूँ मैं !
दोस्त दुनिया सब सिखा देती है ! बहुत अच्छा लिखा !
शुभकामनाएं !
कई सालों बाद ,आज मुड़कर देखा मैंने ,
एहसास हुआ की बहुत दूर आ गया हूँ मैं ,
हमारे साथ भी ऐसा ही हवा था ! बहुत अच्छा लिखा !
ऐसा ही है भाई समय सब कुछ बदल देता है.......
बहुत खूब भाई। बदलते वक्त को बेहद अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया।
raahon ki di hai hala
mast hai ye madhushala...........
सच है-
मिलना और मिटना एक क्षण मे होता है
पर दे जाता है - यादों की गठरी
......... खोलो तो कभी ख़ुशी,कभी आंसू मिलते हैं
गया वक़्त आँखों के आगे बादलों - सी
उड़ान लेता है..........
जाने कितना वक़्त पलभर में गुजर जाता है
और फिर यादों की गठरी में छुप जाता है......
साथ-साथ चलने के लिए
बेहतरीन...
kitna sach likha hai apane... aaj ke daur mai jeenewale insano ki yehi halat hai.. nayi manzil ki talash mai apno se durr bas gaya hai... khud ka raasta hbul gaya hai...
bahut hi sundarl ikha hai apane
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