एक शहर धमाकों से फिर दहला है,फिर चंद इंसानों ने इंसानियत को फिर शर्मसार किया है ......क्या हमारी ज़िन्दगी उन्हीं लोगों के हाथ कठपुतली बन गई है ???
धुआं सा उठता दीखता है,
कहीं तो आग ज़रूर लगी होगी ??
सवाल ये नहीं,
की घर तेरा जला या मेरा ??
पर हर ज़ख्म की टीस पर इंसानियत कितना रोई होगी??
फिर से दहली इंसानियत ,
दहशतगर्दों का मकसद क्या रहा होगा ??
सवाल ये नहीं,
की वो कौन था ??
पर इंसानियत को शर्मसार करने वाला, वो भी तो कभी इन्सान रहा होगा ??
हाय रे इंसानियत,तुझे अब इंसान से ही है खतरा,
जाने तेरा नसीब क्या होगा ??
सवाल ये नही,
कि कौन मरा ,या कौन ज़ख्मी हुआ ??
पर ए इंसान किसी के ज़ख्मो को महसूस कर , दर्द तेरे सीने भी ज़रूर होगा !!!!!!!!!
10 comments:
हाय रे इंसानियत,तुझे अब इंसान से ही है खतरा,
जाने तेरा नसीब क्या होगा ??
सवाल ये नही,
कि कौन मरा ,या कौन ज़ख्मी हुआ ??
पर ए इंसान किसी के ज़ख्मो को महसूस कर , दर्द तेरे सीने भी ज़रूर होगा
बहुत दुखदायक क्षण है ! और शर्मनाक भी ! अफ़सोस जनक.... !
भाव पुर्ण कविता कही हे आप ने , हक्कीकत से भरपुर. धन्यवाद
"पर ए इंसान किसी के ज़ख्मो को महसूस कर, दर्द तेरे सीने भी ज़रूर होगा!" सच कहा विक्रांत!
naseeb,aaj,kal sab dahshat me
aur sirf prashn.......kya hai ye,kyun,kya hoga ant......kahan jayen,kise bulayen,khud kaun sa kadam uthaayen ki aman ho !
शायद जानवर कभी सामूहिक तौर पर अन्य जानवरों को नही मारते ! हम जानवरों से अधिक निकृष्ट हैं विक्रांत !
बहुत अच्छा लिखते हैं आप ! शुभकामनायें !
सच कहा आपने। लोग कहते हैं जंगल राज। अक्सर हम भी लिखतें हैं जंगल राज। नेता आरोप लगाते हैं जंगल राज। पर शायद वो ये नहीं जानते कि जंगल का भी अपना कानून होता है। जंगल में कोई बिना उद्देश्य सामूहिक नरसंहार नहीं करता। वहां तो भूख मिटाने की होड़ है पर यहां इंसान को मारकर कौन सी भूख मिटायी जा रही है। आपकी कविता बहुत अच्छी और भावपूर्ण रही।
हाय रे इंसानियत,तुझे अब इंसान से ही है खतरा,
जाने तेरा नसीब क्या होगा ??
सवाल ये नही,
कि कौन मरा ,या कौन ज़ख्मी हुआ ??
well i feel
the human nature u described
mind blowing composition
धुआं सा उठता दीखता है,
कहीं तो आग ज़रूर लगी होगी ??
सवाल ये नहीं,
की घर तेरा जला या मेरा ??
पर हर ज़ख्म की टीस पर इंसानियत कितना रोई होगी??
aapki chinta jayaj hai
हाय रे इंसानियत,तुझे अब इंसान से ही है खतरा,
जाने तेरा नसीब क्या होगा ??
बहुत सही कहा आपने ! इससे तो हम भूत ही अच्छे !
फिर से दहली इंसानियत ,
दहशतगर्दों का मकसद क्या रहा होगा ??
इस रचना का एक एक शब्द गहरी चोट करता है !
बधाई हो !
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