सोचा था कि तुझे एक नाम दूंगा ,सारे नाम तेरी हस्ती के आगे फीके पड़ रहे थे ,फिर सोचा की नाम में क्या रखा है ,गुमनामी में भी एक नाम छुपा होता है !तुझे नज़्म कहने से भला है की तू अनामिका ही रहे ............
जब मैं ,मैं नही था ,तब मैं मेरे मैं होने की तमन्ना करता था ,
आज जब मैं ,मैं हूँ ,तब भी मैं,मैं होकर मैं नहीं !
ख़ुद को पहचानने के लिए सौ जिंदगियाँ भी नाकाफी हैं !!!!!!!
एक रात ,रतजगों से ऊबकर ,मेरी आँखों ने मुझसे नींद की गुजारिश की थी ,
अब जो सोता हूँ तो नींद में मेरी आँखें रतजगों के ख्वाब देखती हैं !
न जाने ये आँखें मुझसे क्या चाहती हैं !!!!!!!!!!
तेरी आमद पर फिर कोई सफहा खुले ,कुछ ऐसी ही उम्मीद है मेरे यारों को ,
तेरी आमद की उम्मीद में देख ,मैंने आज फिर सितारों से शब् सजाई है !
ये उम्मीदें भी अजीब होती हैं ,इंसानों को कभी ना-उम्मीद नही होने देतीं !!!!!!!!!!!
मैं कौन हूँ?? मैं तो वही हूँ जो पहले था ,
न आलम बदला ,और ना ही दुनिया बदली है !
ख़ुद से अजनबी लोगों की पहचान भला क्या होगी !!!!!!!!
ये बंजारन सी ज़िन्दगी,एक पल भी थमती नहीं,
इस पल यहाँ डाला है डेरा,अगले पल की ख़बर नही !
सुना है ज़िन्दगी का आखिरी पड़ाव मौत होती है!!!!!!!!!!!!!!
Tuesday, November 18, 2008
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10 comments:
मैं कौन हूँ?? मैं तो वही हूँ जो पहले था ,
न आलम बदला ,और ना ही दुनिया बदली है !
ख़ुद से अजनबी लोगों की पहचान भला क्या होगी !!!!!!!!
क्या खूब कहा है आपने ! बहुत बढ़िया ! शुभकामनाएं !
तेरी आमद की उम्मीद में देख ,मैंने आज फिर सितारों से शब् सजाई है !
ये उम्मीदें भी अजीब होती हैं ,इंसानों को कभी ना-उम्मीद नही होने देतीं !!!!!!!!!!!
मजा आज्ञा विक्रांत जी ! बहुत शानदार रचना ! धन्यावाद !
ये बंजारन सी ज़िन्दगी,एक पल भी थमती नहीं,
इस पल यहाँ डाला है डेरा,अगले पल की ख़बर नही !
सुना है ज़िन्दगी का आखिरी पड़ाव मौत होती है!!!!!!!!!!!!!!
bade dino baad dikhayi diye .....hamesha udaas nazm hi kyu likhte ho yaar....khair ye line khaas pasand aayi.
हर पल जियो यहाँ ,एक पल भी कमती नहीं
जल्दी में क्यों रहते हो,एक पल भी सबर नही
सारे पड़ाव पार करो इत्ती जिंदगी बहोत होती है
बहुत खूब .
बधाई
ये बंजारन सी ज़िन्दगी,एक पल भी थमती नहीं,
इस पल यहाँ डाला है डेरा,अगले पल की ख़बर नही !
बहुत खूब, दीपक!
Excellent poem!
Sorry Vikrant, I got confused after a few shots in your Madhushala!
wah pyare wah
mazaa aa gaya
badhai
ये बंजारन सी ज़िन्दगी,एक पल भी थमती नहीं,
इस पल यहाँ डाला है डेरा,अगले पल की ख़बर नही !
सुना है ज़िन्दगी का आखिरी पड़ाव मौत होती है!
एक बेहतरीन रचना. बधाई स्वीकारे
एक रात ,
रतजगों से ऊबकर ,
मेरी आँखों ने नींद की गुजारिश की,
अब जो सोता हूँ तो
नींद में मेरी आँखें...
रतजगों के ख्वाब देखती हैं!
न जाने ये आँखें मुझसे क्या चाहती हैं
बहुत बढ़िया विक्रांत। तुम्हारी नज्मों में वैसे भी भावनाएं उछल उछल कर बोलती हैं.... ऐसी ही एक और कोशिश...बधाई।
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