Sunday, May 6, 2012

परिचय

 कभी आईने तलाशे ...कभी अंधेरों से अपने अक्स का पता पूछा . ढूंढते  रहे  अपने  आप  को  हम हर पल हर जगह । ज़िन्दगी एक तलाश सी लगने लगी है अब .........

एक अजीब सी कश्म्कश  है ये ज़िन्दगी ।।।।

जो पास होता है उस से मिलते नहीं....
जो होता है दूर ,होती है उसकी आरज़ू !!!!

 निकल पड़े हैं फिर से हम एक सफ़र पर...
कि  कहीं पहुंच कर खुद तक पहुँच सकें ।।।।
आजकल आईने में कोई और शख्स नज़र आता है!!!!!!!!

कभी चले हम तन्हा ...
और  कभी चले हम होकर भीड़ में शामिल ....
अपने तारुफ्फ़ (परिचय) को तलाशते रहे हर शहर हर मंजिल!!!!

ना सोचा था...
कि इतना भी मुश्किल हो सकता है ...खुद को खुद से मिलवाना  
जो मिले खुद से हम....
तो नाम पूछ बैठे!!!

8 comments:

ZEAL said...

Very impressive creation..

ताऊ रामपुरिया said...

निकल पडे हैं फ़िर से हम एक सफ़र पर...
कि कहीं पहुंच कर खुद तक पहुंच सकें

वाह वाह...नायाब.

रामराम.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

बहुत कमाल लिखा है...
जो पास होता है उस से मिलते नहीं
जो होता है दूर होती है उसकी आरज़ू...
दाद स्वीकारें.

Smart Indian said...

बहुत अच्छी लगी आपकी यह कविता. सप्ताह में एकाध रचना ही सही, लिखते रहिये! शुभकामनायें!

S.N SHUKLA said...

सुन्दर और सार्थक सृजन, बधाई.

कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारकर अपना स्नेह प्रदान करें, आभारी होऊंगा .

somali said...

bahut sarthak aur sundar rachna sir.......badhai

Dr. Shorya said...

adbhut , sunder

tanahi.vivek said...

Bahut Khoob... Bhaut Umda