कल रात सारी ...............
किताब ऐ माज़ी के वरक पलटते-पलटते ,इक भूली हुई नज़्म से फिर मुलाकात हो गई ,उसने पूछा कैसे हो ??मुझे याद करते हो न ??मेरे मुंह से हाँ ही निकल पाई थी की वो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे मेरे माज़ी में ले आई !ज़रा धुंध थी ,पर धीरे-धीरे सब साफ़ हो रहा था ,मैंने ख़ुद को कंप्यूटर साइंस की क्लास में देखा ,प्रोफ़ेसर साहब लेक्चर दे रहे थे , और मैं एक तरफा प्यार पर रिसर्च कर रहा था!अपनी डायरी में इस नज़्म को लिख भी रहा था !ख़ुद में खोया देखकर प्रोफ़ेसर साहब ने चॉक फैंककर मारा था और ये नज़्म वहीँ अधूरी छूट गई !ये नज़्म आज भी अधूरी है या शायद ये अधूरी ही मुकम्मल है ..............................................
कल रात सारी,
तेरे ख्यालों में गुज़री ,
नींद के कुछ कतरे आंखों से गुज़रे ,तो ख्वाबों में भी तुमको पाया !!!!
ख्यालों में भी तुम और ख्वाबों में भी तुम ही थी ,
ये जानकर तुमको भी यकीं न आएगा ,
जो जानेगी दुनिया इसको तो ये आशिक दीवाना कहलायेगा !!!
हाँ दीवाना हूँ तो दीवाना कहलाना क्या बुरा है ??
आंखों की नींद है गुम , जाने ये क्या माज़रा है ??
क्या इसी का नाम मोहब्बत है??
अगर हाँ ,तो मैं तुमसे दीवानावार मोहब्बत करता हूँ
ये भी सच है की तुमसे कहने से डरता हूँ !
पर क्या तुमने कभी मेरी आंखों में इस मोहब्बत को नहीं देखा ??
नही देखा, कि ये तुम्हारे अन्दर बसी उस लड़की से प्यार करती हैं ,जिसकी पहचान सादगी है ,
जिसकी आंखों में ऊंचा उड़ने के ख्वाब जगमाते हैं !!
खैर तुम मुझसे मोहब्बत करो न करो,
मैंने तुमसे कि है मोहब्बत !!
जैसे साहिल को छूकर लहरें गुम हो जाती हैं कहीं ,
वैसे ही तुम भी मेरे मन को छू कर ,गुम हो गई हो !
तुम नज़रों से दूर सही , पर दिल से दूर नहीं ,
जब चाहूँ मैं ,मिल सकता हूँ तुमसे मेरे ख्वाबों -ख्यालों में .......
कल रात सारी,
तेरे ख्यालों में गुज़री ,
नींद के कुछ कतरे आंखों से गुज़रे ,तो ख्वाबों में भी तुमको पाया..........................................
Comments
बहुत गहरे में उतर रही है आपकी रचना ! बहुत शुभकामनाएं !
मैंने तुमसे कि है मोहब्बत !!
जैसे साहिल को छूकर लहरें गुम हो जाती हैं कहीं ,
वैसे ही तुम भी मेरे मन को छू कर ,गुम हो गई हो !
विक्रांत जी चोट और याद दोनों गहरी हैं ! तिवारी साहब तो अपने अनुभव से बात को तौलते हैं !
बड़ी सशक्त रचना है ! बधाई
हमारे भूतमहल पर भी आइये ! शुभकामनाएं !
jaata har jeene wala
realy lets feel what we have
regards
आपकी रचनात्मकता प्रभाव छोड़ती है..
बधाई...
saari raat khyaalon me,neend koso dur,
aur sukun.........bahut kareebi ehsaas
खैर तुम मुझसे मोहब्बत करो न करो,
मैंने तुमसे कि है मोहब्बत !!
जैसे साहिल को छूकर लहरें गुम हो जाती हैं कहीं ,
वैसे ही तुम भी मेरे मन को छू कर ,गुम हो गई हो !
तुम नज़रों से दूर सही , पर दिल से दूर नहीं ,
जब चाहूँ मैं ,मिल सकता हूँ तुमसे मेरे ख्वाबों -ख्यालों में .......
कल रात सारी,
तेरे ख्यालों में गुज़री ,
नींद के कुछ कतरे आंखों से गुज़रे ,तो ख्वाबों में भी तुमको पाया..........................................
क्या बात है दोस्त...कुछ लफ्ज़ बेहद जज्बाती है
Vaise aapki yah rachna to purna hai.
kindly do comment
without
madushala
my blog is simply hala
regards
need u r comment
तेरे ख्यालों में गुज़री ,
नींद के कुछ कतरे आंखों से गुज़रे,
तो ख्वाबों में भी तुमको पाया"
बहुत खूब, विक्रांत!
जिसकी पहचान सादगी है ,
जिसकी आंखों में ऊंचा उड़ने के ख्वाब जगमाते हैं !!
खैर तुम मुझसे मोहब्बत करो न करो,
मैंने तुमसे कि है मोहब्बत !!
बहुत बढ़िया विक्रांत....
अच्छा लिखा है,खुशी हुई कि तुमने खूबसूरती से नहीं जज्बे से प्यार किया।
पूरी सुने बिना नहीं रह सका --बहुत गहराई से
प्याले में डुबकी लगा कर , प्रीति हाला में डूब -डूब कर कही गई है।
अति सुन्दर!!
बधाई। अर्ज है--
प्रेम प्याला पिलादे ए साकी
रह न जाये कोई प्यास बाकी।
एसी हाला भरा एक प्याला
प्रीति रस जिसमें छक कर हो डाला।
हस्ती मिट जाय मेरी जहांसे
नाम हाला ही रह जाय बाकी ॥ --डा श्याम गुप्त