हाय रे इंसानियत !!!!!!!!

एक शहर धमाकों से फिर दहला है,फिर चंद इंसानों ने इंसानियत को फिर शर्मसार किया है ......क्या हमारी ज़िन्दगी उन्हीं लोगों के हाथ कठपुतली बन गई है ???
धुआं सा उठता दीखता है,
कहीं तो आग ज़रूर लगी होगी ??
सवाल ये नहीं,
की घर तेरा जला या मेरा ??
पर हर ज़ख्म की टीस पर इंसानियत कितना रोई होगी??
फिर से दहली इंसानियत ,
दहशतगर्दों का मकसद क्या रहा होगा ??
सवाल ये नहीं,
की वो कौन था ??
पर इंसानियत को शर्मसार करने वाला, वो भी तो कभी इन्सान रहा होगा ??
हाय रे इंसानियत,तुझे अब इंसान से ही है खतरा,
जाने तेरा नसीब क्या होगा ??
सवाल ये नही,
कि कौन मरा ,या कौन ज़ख्मी हुआ ??
पर ए इंसान किसी के ज़ख्मो को महसूस कर , दर्द तेरे सीने भी ज़रूर होगा !!!!!!!!!
Comments
जाने तेरा नसीब क्या होगा ??
सवाल ये नही,
कि कौन मरा ,या कौन ज़ख्मी हुआ ??
पर ए इंसान किसी के ज़ख्मो को महसूस कर , दर्द तेरे सीने भी ज़रूर होगा
बहुत दुखदायक क्षण है ! और शर्मनाक भी ! अफ़सोस जनक.... !
aur sirf prashn.......kya hai ye,kyun,kya hoga ant......kahan jayen,kise bulayen,khud kaun sa kadam uthaayen ki aman ho !
बहुत अच्छा लिखते हैं आप ! शुभकामनायें !
जाने तेरा नसीब क्या होगा ??
सवाल ये नही,
कि कौन मरा ,या कौन ज़ख्मी हुआ ??
well i feel
the human nature u described
mind blowing composition
कहीं तो आग ज़रूर लगी होगी ??
सवाल ये नहीं,
की घर तेरा जला या मेरा ??
पर हर ज़ख्म की टीस पर इंसानियत कितना रोई होगी??
aapki chinta jayaj hai
जाने तेरा नसीब क्या होगा ??
बहुत सही कहा आपने ! इससे तो हम भूत ही अच्छे !
दहशतगर्दों का मकसद क्या रहा होगा ??
इस रचना का एक एक शब्द गहरी चोट करता है !
बधाई हो !