रास्ता ..................

कई सालों बाद ,आज मुड़कर देखा मैंने ,
एहसास हुआ की बहुत दूर आ गया हूँ मैं ,
मेरा गाँव बहुत पीछे रह गया है ,अब तो आंखों से भी ओझल हो गया है ,
अपने आप को देखा तो पाया कि ये शहर मेरी रग रग में बस गया है !
मतलब,पैसा,फायदा ,नुक्सान,और घमंड ,मेरी पाँच इन्द्रियां बन गए हैं !
अब तो मैं बस में किसी बुजुर्ग को खड़ा देखकर भी अपनी सीट नही छोड़ता!
ऑफिस को देर न हो जाए ,इसलिए किसी अंधे को सड़क पार नहीं करवाता !
और न ही किसी गिरे हुए को रास्ते से उठता हूँ ,सोचता हूँ इससे क्या फायदा होगा मुझको ?
अपने घमंड को आंच न आए ,इसलिए किसी भी छोटी बात पर झगड़ लेता हूँ !
अब किसी कि मदद करने के लिए ,कीमत मांगने में भी हिचकिचाहट नही होती मुझको !
हर बात को फायदे नुक्सान में तोलने लगा हूँ मैं !
मैं आया तो था इस शहर में बसने को कभी,
पर मालूम न था कि ये शहर ही मुझमे बस जाएगा ,
सोचता हूँ वापस चला जाऊं ,
पर गाँव जाने के सारे रास्ते बंद से दीखते हैं ,
क्या तुम्हें कोई रास्ता मालूम है ??मैं पैसे देने को तैयार हूँ !
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पर गाँव जाने के सारे रास्ते बंद से दीखते हैं ,
क्या तुम्हें कोई रास्ता मालूम है ??मैं पैसे देने को तैयार हूँ !
अब विक्रान्त्जी आप इतने दूर आ चुके हैं की पैसे से तो कोई रास्ता
नही मिलने वाला !:) बहुत सटीक व्यंग है ! बहुत मजा आया, शुभकामनाए !
धन्यवाद एक बेहतरीन कविता के लिये.
बहुत खूब विक्रांत, सिद्ध करने का निराला अंदाज़!
धन्यवाद !
दोस्त दुनिया सब सिखा देती है ! बहुत अच्छा लिखा !
शुभकामनाएं !
एहसास हुआ की बहुत दूर आ गया हूँ मैं ,
हमारे साथ भी ऐसा ही हवा था ! बहुत अच्छा लिखा !
mast hai ye madhushala...........
सच है-
मिलना और मिटना एक क्षण मे होता है
पर दे जाता है - यादों की गठरी
......... खोलो तो कभी ख़ुशी,कभी आंसू मिलते हैं
गया वक़्त आँखों के आगे बादलों - सी
उड़ान लेता है..........
जाने कितना वक़्त पलभर में गुजर जाता है
और फिर यादों की गठरी में छुप जाता है......
साथ-साथ चलने के लिए
bahut hi sundarl ikha hai apane