मैं जुगनुओं से पूछता रहा तारों का पता !
मैं उदासियों से पूछता रहा मुस्कुराहटों का पता !
अपने अक्स को ही समझ बैठा था मैं कोई अजनबी
मैं आइनों से पूछता रहा खुद का पता !!
न शब् से कोई उलफ़त थी ,न सहर से कोई गुरेज़ ,
मैं उजालों से पूछता रहा अँधेरों का पता !!
अरसा हुआ बारिशों में भीगे हुए ,
मैं तिशनगी से पूछता रहा आबशारों का पता !!
हर बार गुमराह हुए ,जब भी निकले दरिया की सैर को,
मैं मझधारों से पूछता रहा किनारों का पता !!
मेरी आँखें भूल चुकी थी नींद की मीठी लोरियाँ ,
मैं रतजगों से पूछता रहा ख़्वाबों का पता !!
न परवाज़ का कोई इल्म था न डूबने का कोई डर ,
मैं परिन्दों से पूछता रहा गहराईयों का पता !!
सुकूँ तो बस लापता होने में है कहीं ,
मैं गैरों से पूछता रहा अपने घर का पता !!
ज़िन्दगी और भी ख़ूबसूरत हो जाती,जो तुम मिल जाते मुझे पहले ही कहीं ,
मैं अपनी तन्हाईयों से पूछता रहा तेरे गलियारों का पता !!
बदल रहा है ये शहर ,कोई सुनता नहीं किसी की बात ,
मैं शोर-ओ -गुल से पूछता रहा ख़लाओं का पता !!
पड़ाव मिल भी जाते कहीं तो मैं रुक न पाता ,
मैं बंजारों से पूछता रहा मंज़िलों का पता !!