खाक़सार हूँ मैं इस ज़माने में,
सारा जहाँ है इक कैनवस,मुझ दीवाने का,
खींचता रहता हूँ इसी कैनवस पर लकीरें,
कुछ बन जाती हैं तसवीरें,
कुछ रूप ले लेती हैं किसी अफ़साने का।
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मेरी भी एक मधुशाला है ,यह बच्चन जी की मधुशाला की हाला का कतरा भर भी नही,फिर भी ये मेरी मधुशाला है .इसमे हर पीने वाले का स्वागत है ..हर उस दोस्त का स्वागत है जो इस जीवन मधुशाला को और जानना चाहता है ..मेरी मधुशाला एक प्रयास है ख़ुद को जानने का...उम्मीद है यह इस जीवन की कसौटी पर खरी उतरेगी.
3 comments:
bahut badhiyaa
कुछ रूप ले लेती हैं किसी अफ़साने का।
भई शर्माजी जरा अफसाने को आगे बढाइये !
आप आसमान से भी उंचे उडे !
यही शुभकामनाएँ
वो थी मधुशाला बच्चन जी की और यह मधुशाला निहायत ही आपकी है । इस मधुशाला में आपका स्वागत है । अब ब्लॉग की दुनिया में आ गए हैं तो अब आप गुमनाम नहीं रहेंगे । अब अंधेरे नहीं ब्लॉगर आपके दोस्त होंगे । आसमान से भी ऊँचा उड्ने के आपके ख्वाब पूरे हों इन्हीं शुभकामनाओं के साथ
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