आज सोचा है मैंने की डूबते सूरज को सलामी देकर ,इक काली स्याह रात का वादा लूँगा,
रात जिसमें तारे भी हों, जुगनू भी और तुम भी,
जो बस बातों-बातों में ही कट जाए,
जो बस आंखों-आंखों में ही गुज़र जाए,
जिसके आगोश में हम हो जायें गुम,
जिसके अंधेरे में सहर की चाहत को भी भूलें हम,
जिसमे अधूरी रहे न कोई बात,
जो बरसे हम पर बनकर रिमझिम बरसात ,
इक ऐसी रात का वादा लूँगा
आज सोचा है मैंने की डूबते सूरज को सलामी देकर ,इक काली स्याह रात का वादा लूँगा,.......
4 comments:
बहुत सुंदर विक्रांत जी. भगवान् करे आपकी मुरादें जल्दी ही पूरी हों. लिखते रहिये.
विक्रांत जी बहुत बढिया लिखा आपने !
"जिसमे अधूरी रहे न कोई बात,"
ईश्वर आपकी हर बात और मुराद पूरी करे !
यही शुभेच्छा !
bahut khoob........padhkar achha laga ....khas taur se ye line...
जिसमे अधूरी रहे न कोई बात,
जो बरसे हम पर बनकर रिमझिम बरसात ,
इक ऐसी रात का वादा लूँगा
आज सोचा है मैंने की डूबते सूरज को सलामी देकर ,इक काली स्याह रात का वादा लूँगा,.......
आनन्द आ गया.बहुत आभार.
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