Monday, July 21, 2008

रात का वादा...


आज सोचा है मैंने की डूबते सूरज को सलामी देकर ,इक काली स्याह रात का वादा लूँगा,

रात जिसमें तारे भी हों, जुगनू भी और तुम भी,

जो बस बातों-बातों में ही कट जाए,

जो बस आंखों-आंखों में ही गुज़र जाए,

जिसके आगोश में हम हो जायें गुम,

जिसके अंधेरे में सहर की चाहत को भी भूलें हम,

जिसमे अधूरी रहे न कोई बात,

जो बरसे हम पर बनकर रिमझिम बरसात ,

इक ऐसी रात का वादा लूँगा

आज सोचा है मैंने की डूबते सूरज को सलामी देकर ,इक काली स्याह रात का वादा लूँगा,.......

4 comments:

Smart Indian said...

बहुत सुंदर विक्रांत जी. भगवान् करे आपकी मुरादें जल्दी ही पूरी हों. लिखते रहिये.

ताऊ रामपुरिया said...

विक्रांत जी बहुत बढिया लिखा आपने !
"जिसमे अधूरी रहे न कोई बात,"
ईश्वर आपकी हर बात और मुराद पूरी करे !
यही शुभेच्छा !

डॉ .अनुराग said...

bahut khoob........padhkar achha laga ....khas taur se ye line...

जिसमे अधूरी रहे न कोई बात,

जो बरसे हम पर बनकर रिमझिम बरसात ,

इक ऐसी रात का वादा लूँगा

आज सोचा है मैंने की डूबते सूरज को सलामी देकर ,इक काली स्याह रात का वादा लूँगा,.......

Udan Tashtari said...

आनन्द आ गया.बहुत आभार.