ये शाम सज कर आई है आज मेरे लिए ,
होठों पे लिए मुस्कान और जलाये तारों के दीये ,
कभी यों लगता है मैं बना हूँ इसके लिए,
और ये बनी है सिर्फ़ मेरे लिए
गर तुम भी देख पाओ इन अंधेरों की रौशनी को,
तो जान जाओगे कि हर रौशनी जली है किसी अंधेरे के लिए
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8 comments:
ये शाम सज कर आई है आज मेरे लिए ,
होठों पे लिए मुस्कान और जलाये तारों के दीये ,
कभी यों लगता है मैं बना हूँ इसके लिए,
और ये बनी है सिर्फ़ मेरे लिए
aameen.....
बहुत खूब ! कुछ तो बात है !
"हर रौशनी जली है किसी अंधेरे के लिए" - बहुत सुंदर विक्रांत भाई!
"हर रौशनी जली है किसी अंधेरे के लिए" - बहुत सुंदर विक्रांत भाई!
"har roshni jali hai kisi andhere ke liye"
badhiya chitran
बहुत उम्दा...वाह!
bhai
bahut umda badhai....
sunder khayaal..badhaayee...
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