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तज़ाद

 मैं  जुगनुओं से पूछता रहा तारों का पता ! मैं उदासियों से पूछता रहा मुस्कुराहटों  का पता ! अपने अक्स को ही समझ बैठा था मैं कोई अजनबी  मैं आइनों से पूछता रहा खुद का पता !! न शब् से कोई उलफ़त थी ,न सहर से कोई गुरेज़ , मैं उजालों से पूछता रहा अँधेरों का पता !! अरसा हुआ बारिशों में भीगे हुए , मैं तिशनगी से पूछता रहा आबशारों का पता !! हर बार गुमराह हुआ ,जब भी निकला  दरिया पर कश्ती को लेकर ,  मैं मझधारों से पूछता रहा किनारों का पता !! मेरी आँखें भूल चुकी थी नींद की मीठी लोरियाँ , मैं रतजगों से पूछता रहा ख़्वाबों का पता !! न परवाज़ का कोई इल्म था न डूबने का कोई डर , मैं परिन्दों से पूछता रहा   गहराईयों का पता !! सुकूँ तो बस लापता होने में है कहीं , मैं गैरों से पूछता रहा अपने घर का पता !! ज़िन्दगी और भी ख़ूबसूरत हो जाती,जो तुम मिल जाते मुझे पहले ही कहीं , मैं अपनी तन्हाईयों से पूछता रहा तेरे गलियारों का पता !! बदल रहा है ये शहर ,कोई सुनता नहीं किसी की बात , मैं शोर-ओ -गुल  से पूछता रहा ख़लाओं का पता !! पड़ाव मिल भी जाते कहीं  तो मैं रुक न पाता , मैं बं...

खालीपन

  रोज़ कोसते हैं हम अपने खालीपन को , पर खालीपन में भी तन्हाईयों का साथ तो मिला होगा ! जो खाली है, वो भी तो शायद अंदर से भरा होगा ..... कुछ ग़म ,अश्क़ कुछ,या फिर यादों का कोई तो खण्डहर बचा होगा !!!! सच है की हम सब रहते हैं अपनी ही ख़लाओं में आजकल कैद, पर रूह की सुनसान राहों में ,माज़ी की तसवीरों से कोई तो गलियारा सजा होगा !!! शब् लम्बी है बहुत ,माना की अँधेरा भी घना होगा , आस मत छोड़ सहर की ऐ दोस्त ,न जाने खुदा ने तेरे लिए क्या कुछ सोचा होगा !!!

आदतें

 आदतें भी अज़ीब  होती हैं , बिना किसी रिश्ते के, ताउम्र को हमदम हो  जाती हैं ! कभी वो जाती नहीं , तो कभी जाते जाते जातीं हैं  आदतें भी अज़ीब  होती हैं , न जाने कब आदत बन जाती हैं !

मुझे शायर न समझो...

 मुझे शायर  न समझो मेरे यारों , हम तो यूँ ही कलम चला लेते हैं , हर ख़्याल को रखते हैं ज़हन में रवाँ , और कभी लफ़्ज़ों के कालीन बिछा लेते हैं ! खुली आँखों से देख लेते हैं बहुत सारे ख़्वाब , और कभी किसी ख़्वाब को आईने में सजा लेते हैं !! मुझे शायर  न समझो मेरे यारों , हम तो यूँ ही कागज़ पर जश्न -ऐ -ज़िन्दगी  मना लेते हैं !!

जश्न

 चल चल  कर थकने लगा हूँ ,अँधेरों से रौशनी परख़ने लगा हूँ,जी करता है कहीं बैठ कर दो पल आराम कर लूँ ,दो पल की फ़ुरसत में दो सदी  ज़िन्दगी की महसूस कर लूँ |  कोई किस्सा नया छेड़ो आज , कोई नई नज़्म सुनाओ यारों ||  फ़ुरसत का आलम है चुप न बैठो , हर पल जश्न  कोई नया मनाओ यारों ||  रूठी साँझ को न कोई शिक़वा रहे , ज़रा तारोँ को आवाज़ लगाओ यारों ||  शब् से कह दो,ना ढले आज , अब सहर को बुलाकर,बेवजह ना सताओ यारों || 

मैं अकेला ही चलूँगा ......

अब मैं अकेला ही चलूँगा जानिबे अमन! कितनी भी कठिन डगर हो, हर कदम गुमराह होने का डर हो, जीत बसी है मेरे हर तस्सवुर में, इक रोज़ हासिल करूँगा मैं मंजिल को!!! बंद दरवाजों में सहमे बैठे हैं लोग , कुछ खफा खफा,नाराज़ से लोग , उन तक ये पैगाम पहुंचे , ज्यों जलेगी एक भी शम्मा ,दूर अँधेरा होगा!!!! सुना है ,कल जली थी एक शम्मा , आज सैंकडों शम्मे रौशन होंगी , जिस राह पर मैं कल तलक था तन्हा, उस राह पर आज सारी दुनिया होगी!!!!! मैं अकेला ही चला था जानिबे अमन ,आज देखो मेरे सैंकडों हां थ हैं !!!!!!!!!!!!!!

बारिश !!

आज जी करता है यूँ , कि सौंप दूँ खुद को , रिमझिम बरसती बारिश के आगोश में , और ओढ़ लूँ बूँदों की चादर ! आखों में भर लूँ बूंदों का सुरमा ! और फिर से रवाँ कर लूँ, अपने बचपन  को पल भर ! फिर से, मासूमियत भरी आखों  से देख सकूँ, इस दुनिया को! और फिर से शुरू हो जाये , कागज़ की कश्तियों का  सफ़र ! कायम हो जाए फिर से, बेफिक्रियों का आलम, भीग जाने की फ़िक्र भी, हो जाये बे-असर !!