मुझे शायर न समझो...
मुझे शायर न समझो मेरे यारों ,
हम तो यूँ ही कलम चला लेते हैं ,
हर ख़्याल को रखते हैं ज़हन में रवाँ ,
और कभी लफ़्ज़ों के कालीन बिछा लेते हैं !
खुली आँखों से देख लेते हैं बहुत सारे ख़्वाब ,
और कभी किसी ख़्वाब को आईने में सजा लेते हैं !!
मुझे शायर न समझो मेरे यारों ,
हम तो यूँ ही कागज़ पर जश्न -ऐ -ज़िन्दगी मना लेते हैं !!
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