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Showing posts from July, 2008

"जस्ट अनदर डे" -इन बैंगलोर

सुबह के साढे सात बज रहे थे ,हमेशा की तरह आज भी मैं अपनी बालकनी में ऑफिस की कैब का इंतजार कर रहा था ! मौसम काफी सुहावना हो गया था,हल्की-हल्की बारिश शुरू हो गई थी ,इससे पहले की मैं मौसम की रूमानियत को महसूस करता ,कैब के हार्न ने ध्यान बँटा दिया ,और हमेशा की तरह मैं ऑफिस के लिए निकल पड़ा ! ऑफिस में सबकुछ हमेशा जैसा ही था,साथियों से दुआ सलाम करना,दर्जनो ई -मेल्स चेक करना , कॉफी ब्रेक लेना ,वापस काम पर लगना और दोपहर को लंच के लिए कैफेटेरिया जानासब कुछ हमेशा की तरह ही चल रहा था लंच से वापिस आकर मैं दोबारा काम पर लग गया ,करीब आधे घंटे के बाद ख़बर आई की शहर में बम धमाके हुए हैं ! कुछ इंसानों ने आज फिर इंसानियत का गला घोंटा था, पाँच जगहों पर सात बम धमाके हुए ,दो लोग मारे गए और करीब बीस घायल हुए थे ! एक बम धमाका हमारे ऑफिस से चंद मील दूर ही हुआ था ,उस धमाके की आवाज़ तो हम तक नहीं पहुँची पर ख़बर सुनकर सब सिहर ज़रूर गए थे ! सभी लोग अपने घरवालों और दोस्तों से संपर्क करने की कोशिश कर रहे थे ! ख़बरों से पता चला की शहर का ट्रैफिक ठप्प पड़ा है और फ़ोन लाइने भी प्रभावित हुई हैं ! डिपार्टमेन्ट के डाईरेक...

शाम

ये शाम सज कर आई है आज मेरे लिए , होठों पे लिए मुस्कान और जलाये तारों के दीये , कभी यों लगता है मैं बना हूँ इसके लिए, और ये बनी है सिर्फ़ मेरे लिए गर तुम भी देख पाओ इन अंधेरों की रौशनी को, तो जान जाओगे कि हर रौशनी जली है किसी अंधेरे के लिए

रात का वादा...

आज सोचा है मैंने की डूबते सूरज को सलामी देकर ,इक काली स्याह रात का वादा लूँगा, रात जिसमें तारे भी हों, जुगनू भी और तुम भी, जो बस बातों-बातों में ही कट जाए, जो बस आंखों-आंखों में ही गुज़र जाए, जिसके आगोश में हम हो जायें गुम, जिसके अंधेरे में सहर की चाहत को भी भूलें हम, जिसमे अधूरी रहे न कोई बात, जो बरसे हम पर बनकर रिमझिम बरसात , इक ऐसी रात का वादा लूँगा आज सोचा है मैंने की डूबते सूरज को सलामी देकर ,इक काली स्याह रात का वादा लूँगा,.......

सदियाँ बीती हैं!!

एक बेजान बदन को ही जिंदा कहे फिरता है , इंसानों को मरे तो सदियाँ बीती हैं , वो वक्त और था जब इन्सान हुआ करता था, और उसकी शरीक-ऐ-हयात इंसानियत भी जिया करती थी , किसी इन्सान का इंसानियत का हाथ थामे तो सदियाँ बीती हैं वो वक्त और था जब इन्सान की आंखों में हया थी , उसके दिल में चैन और रूह में सुकून भी था वो इज्ज़त किया करता था सबकी, और सबसे किया करता था प्यार, पर इन्सान का हया से नाता तोड़े सदियाँ बीती हैं वो वक्त और था जब इन्सान रिश्तों को मानता था , वो भाई ,बहन ,माँ,बाप और दोस्तों को पहचानता था, पर इंसान का हर रिश्ते का गला घोंटे तो सदियाँ बीती हैं वो वक्त और था जब इन्सान खुदा से डरता था, उसके सजदे में झुकता था, और किया करता था उसकी इबादत , पर आज इन्सान ही बन बैठा है खुदा, और इंसानियत के खुदा को मरे तो सदियाँ बीती हैं किसी सच्चे इन्सान को गर फिर से जिला सकूँ , उसके दिल में प्यार और आंखों में हया भर सकूँ, तो अपनी जिंदगी को कामयाब समझूंगा, पर इंसानियत को को जिलाने की इसी कोशिश में तो सदियाँ बीती हैं

मैं

खाक़सार हूँ मैं इस ज़माने में, सारा जहाँ है इक कैनवस,मुझ दीवाने का, खींचता रहता हूँ इसी कैनवस पर लकीरें, कुछ बन जाती हैं तसवीरें, कुछ रूप ले लेती हैं किसी अफ़साने का।

तू रोज़ नया.....

जिंदगी तू रोज़ नया गम देती है,हम हँस कर पिया करते हैं, तू मारने की करती है कोशिश,और हम हँस के जिया करते हैं