मैं

खाक़सार हूँ मैं इस ज़माने में,
सारा जहाँ है इक कैनवस,मुझ दीवाने का,
खींचता रहता हूँ इसी कैनवस पर लकीरें,
कुछ बन जाती हैं तसवीरें,
कुछ रूप ले लेती हैं किसी अफ़साने का।

Comments

36solutions said…
बढिया प्रयास है आपका, धन्यवाद । इस नये हिन्दी ब्लाग का स्वागत है ।
शुरूआती दिनों में वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें इससे टिप्पयणियों की संख्या‍ प्रभावित होती है
(लागईन - डेशबोर्ड - लेआउट - सेटिंग - कमेंट - Show word verification for comments? No)
आरंभ ‘अंतरजाल में छत्तीसगढ का स्पंदन’
कुछ रूप ले लेती हैं किसी अफ़साने का।
भई शर्माजी जरा अफसाने को आगे बढाइये !
आप आसमान से भी उंचे उडे !
यही शुभकामनाएँ
वो थी मधुशाला बच्चन जी की और यह मधुशाला निहायत ही आपकी है । इस मधुशाला में आपका स्वागत है । अब ब्लॉग की दुनिया में आ गए हैं तो अब आप गुमनाम नहीं रहेंगे । अब अंधेरे नहीं ब्लॉगर आपके दोस्त होंगे । आसमान से भी ऊँचा उड्ने के आपके ख्वाब पूरे हों इन्हीं शुभकामनाओं के साथ

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