Tuesday, November 18, 2008
अनामिका !!!!!!
जब मैं ,मैं नही था ,तब मैं मेरे मैं होने की तमन्ना करता था ,
आज जब मैं ,मैं हूँ ,तब भी मैं,मैं होकर मैं नहीं !
ख़ुद को पहचानने के लिए सौ जिंदगियाँ भी नाकाफी हैं !!!!!!!
एक रात ,रतजगों से ऊबकर ,मेरी आँखों ने मुझसे नींद की गुजारिश की थी ,
अब जो सोता हूँ तो नींद में मेरी आँखें रतजगों के ख्वाब देखती हैं !
न जाने ये आँखें मुझसे क्या चाहती हैं !!!!!!!!!!
तेरी आमद पर फिर कोई सफहा खुले ,कुछ ऐसी ही उम्मीद है मेरे यारों को ,
तेरी आमद की उम्मीद में देख ,मैंने आज फिर सितारों से शब् सजाई है !
ये उम्मीदें भी अजीब होती हैं ,इंसानों को कभी ना-उम्मीद नही होने देतीं !!!!!!!!!!!
मैं कौन हूँ?? मैं तो वही हूँ जो पहले था ,
न आलम बदला ,और ना ही दुनिया बदली है !
ख़ुद से अजनबी लोगों की पहचान भला क्या होगी !!!!!!!!
ये बंजारन सी ज़िन्दगी,एक पल भी थमती नहीं,
इस पल यहाँ डाला है डेरा,अगले पल की ख़बर नही !
सुना है ज़िन्दगी का आखिरी पड़ाव मौत होती है!!!!!!!!!!!!!!
Saturday, October 18, 2008
इक रोज़ जब.....
इक रोज़ जब ज़िन्दगी से फिर हारा था मैं,
तो मैंने मौत से मौत मांगी,
मौत ने भी दुत्कारा मुझे और कहा,
जियेगा यूँ ,तो तेरी ज़िन्दगी ही तुझे मारेगी,
हो जाएगा तू बेबस इतना,कि तेरी हर हिम्मत भी हारेगी!
मौत मांगे नही मिलती,
मौत खैरात में नही बंटती,
मौत सिर्फ़ मरने का नाम नही,
एक शानदार मौत को भी जिया जाता है,
जा,जाकर फिर से जी,हर पल को अपने आगोश में ले,
हर पल ज़िन्दगी कि आंखों से आँखें मिला,
जा कह दे उस ज़िन्दगी से,मैंने जीना सीख लिया है,
तुझको तो मैं जीतूँगा एक दिन,
और अपनी मौत को भी जी जाऊँगा !!!!!!!!!!
Monday, September 22, 2008
कल रात सारी ...............
किताब ऐ माज़ी के वरक पलटते-पलटते ,इक भूली हुई नज़्म से फिर मुलाकात हो गई ,उसने पूछा कैसे हो ??मुझे याद करते हो न ??मेरे मुंह से हाँ ही निकल पाई थी की वो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे मेरे माज़ी में ले आई !ज़रा धुंध थी ,पर धीरे-धीरे सब साफ़ हो रहा था ,मैंने ख़ुद को कंप्यूटर साइंस की क्लास में देखा ,प्रोफ़ेसर साहब लेक्चर दे रहे थे , और मैं एक तरफा प्यार पर रिसर्च कर रहा था!अपनी डायरी में इस नज़्म को लिख भी रहा था !ख़ुद में खोया देखकर प्रोफ़ेसर साहब ने चॉक फैंककर मारा था और ये नज़्म वहीँ अधूरी छूट गई !ये नज़्म आज भी अधूरी है या शायद ये अधूरी ही मुकम्मल है ..............................................
कल रात सारी,
तेरे ख्यालों में गुज़री ,
नींद के कुछ कतरे आंखों से गुज़रे ,तो ख्वाबों में भी तुमको पाया !!!!
ख्यालों में भी तुम और ख्वाबों में भी तुम ही थी ,
ये जानकर तुमको भी यकीं न आएगा ,
जो जानेगी दुनिया इसको तो ये आशिक दीवाना कहलायेगा !!!
हाँ दीवाना हूँ तो दीवाना कहलाना क्या बुरा है ??
आंखों की नींद है गुम , जाने ये क्या माज़रा है ??
क्या इसी का नाम मोहब्बत है??
अगर हाँ ,तो मैं तुमसे दीवानावार मोहब्बत करता हूँ
ये भी सच है की तुमसे कहने से डरता हूँ !
पर क्या तुमने कभी मेरी आंखों में इस मोहब्बत को नहीं देखा ??
नही देखा, कि ये तुम्हारे अन्दर बसी उस लड़की से प्यार करती हैं ,जिसकी पहचान सादगी है ,
जिसकी आंखों में ऊंचा उड़ने के ख्वाब जगमाते हैं !!
खैर तुम मुझसे मोहब्बत करो न करो,
मैंने तुमसे कि है मोहब्बत !!
जैसे साहिल को छूकर लहरें गुम हो जाती हैं कहीं ,
वैसे ही तुम भी मेरे मन को छू कर ,गुम हो गई हो !
तुम नज़रों से दूर सही , पर दिल से दूर नहीं ,
जब चाहूँ मैं ,मिल सकता हूँ तुमसे मेरे ख्वाबों -ख्यालों में .......
कल रात सारी,
तेरे ख्यालों में गुज़री ,
नींद के कुछ कतरे आंखों से गुज़रे ,तो ख्वाबों में भी तुमको पाया..........................................
Sunday, September 14, 2008
हाय रे इंसानियत !!!!!!!!
एक शहर धमाकों से फिर दहला है,फिर चंद इंसानों ने इंसानियत को फिर शर्मसार किया है ......क्या हमारी ज़िन्दगी उन्हीं लोगों के हाथ कठपुतली बन गई है ???
धुआं सा उठता दीखता है,
कहीं तो आग ज़रूर लगी होगी ??
सवाल ये नहीं,
की घर तेरा जला या मेरा ??
पर हर ज़ख्म की टीस पर इंसानियत कितना रोई होगी??
फिर से दहली इंसानियत ,
दहशतगर्दों का मकसद क्या रहा होगा ??
सवाल ये नहीं,
की वो कौन था ??
पर इंसानियत को शर्मसार करने वाला, वो भी तो कभी इन्सान रहा होगा ??
हाय रे इंसानियत,तुझे अब इंसान से ही है खतरा,
जाने तेरा नसीब क्या होगा ??
सवाल ये नही,
कि कौन मरा ,या कौन ज़ख्मी हुआ ??
पर ए इंसान किसी के ज़ख्मो को महसूस कर , दर्द तेरे सीने भी ज़रूर होगा !!!!!!!!!
Monday, September 8, 2008
रास्ता ..................
Tuesday, August 26, 2008
ऐसा लगा....
एक सुहानी सांझ जब छाए थे आसमान में तारे ,
मैं हुआ तुम्हारी यादों से रूबरू ,
ऐसा लगा कि तुम पास हो मेरे,
ऐसा लगा कि तुम कर रही हो मुझसे बातें,
ऐसा लगा कि दूर हो कर भी कितने पास हैं हम,
और पास हो कर भी कितने दूर ,
ऐसा लगा कि तुमसे ही है हर खुशी मेरी
ऐसा लगा कि तुमसे ही है ये जिंदगी मेरी ,
न जाने कब हुई सांझ से रैन ,
और न जाने कब आंखों में ही हो गई भोर,
अब न तुम थी न तुम्हारा कोई निशाँ,
बस पड़ी रह गई थी मेरे मन के आँगन में ओस ,
उस ओस को छुआ तो ऐसा लगा जैसे आंसू हैं तुम्हारे ,
ऐसा लगा कि जैसे मैं जलता हूँ ,
वैसे तुम भी तो जलती होगी,
ऐसा लगा कि इस जलन में भी एक खुशी है,
जो जल-जल कर तुमको भी मिलती होगी,
ऐसा लगा कि जब हम दोनों का एक सा हाल है ,
तो कब तक रह सकते हैं दूर ??
ऐसा लगा कि आज ही हम फिर मिलेंगे ,
आज ही तुम आओगी ज़रूर ।
Sunday, August 24, 2008
याद तुम आती रहीं.....
जब सावन की बूँदें ,मेरी आखों से नमी चुराती रहीं ,
तब याद तुम आती रहीं,
बस याद तुम आती रहीं !
जब काली रातें ,तेरी यादों की रौशनी से सितारों की चमक चुराती रहीं ,
तब याद तुम आती रहीं,
बस याद तुम आती रहीं !
जब वक्त के दिए ज़ख्मो की टीस,मेरी आंखों को रुलाती रहीं,
तब याद तुम आती रहीं,
बस याद तुम आती रहीं !
जब बनकर हकीकत की परछाइयां,तुम मेरे ख्वाबों में आती रहीं,
तब याद तुम आती रहीं,
बस याद तुम आती रहीं !
तुम दूर हो इसलिए कुछ कह नहीं सकता,
जब आओगी पास ,तो ये तारे भी देंगे गवाही,
कि कैसे तुम्हारी यादें पल पल मुझे तडपती रहीं
कैसे तुम हर पल मुझे सताती रहीं
जब याद तुम आती रहीं,
बस याद तुम आती रहीं !
Friday, July 25, 2008
"जस्ट अनदर डे" -इन बैंगलोर
कुछ इंसानों ने आज फिर इंसानियत का गला घोंटा था, पाँच जगहों पर सात बम धमाके हुए ,दो लोग मारे गए और करीब बीस घायल हुए थे ! एक बम धमाका हमारे ऑफिस से चंद मील दूर ही हुआ था ,उस धमाके की आवाज़ तो हम तक नहीं पहुँची पर ख़बर सुनकर सब सिहर ज़रूर गए थे ! सभी लोग अपने घरवालों और दोस्तों से संपर्क करने की कोशिश कर रहे थे ! ख़बरों से पता चला की शहर का ट्रैफिक ठप्प पड़ा है और फ़ोन लाइने भी प्रभावित हुई हैं ! डिपार्टमेन्ट के डाईरेक्टर ने एक अर्जेंट मीटिंग बुलाई और अगले दिन ऑफिस बंद का नोटिस जारी कर दिया ! हमारा ऑफिस साल के ३६५ दिन चलता है ,कुछ लोग वीकएंड में भी काम करते हैं , छुट्टी की ख़बर सुनकर उनमे से कुछ लोग बहुत खुश थे और बम धमाको की प्रशंसा भी कर रहे थे कुछ देश के हालात से विचलित थे और कुछ लोग दूसरे शहरों में हुए बम धमाको की चर्चा में मशगूल थे , कुछ ये सोच कर परेशान थे की उनका वीकएंड ख़राब जो जाएगा और कुछ को फ्राईडे के ड्राई डे में तब्दील होने की चिंता सता रही थी ! लोगों का एक तपका ऐसा भी था जिसे बिल्कुल भी कोई फर्क नहीं पड़ा ,वो हमेशा की तरह अपने हँसी मजाक में लगे हुए थे एक से मैंने बम धमाको के बारे में राय जाननी चाही (शायद मैंने बहुत बड़ी भूल कर दी ) , जवाब सुनकर मैं अचंभित रह गया ,"बम धमाकों का क्या है होते रहते हैं , और लोग मरते रहते हैं ,चिल इट्स जस्ट अनदर डे डूड " , इंसान इतना भी स्वार्थी हो सकता है मैंने कभी सोचा नही था !
पाँच बज चुके थे ,ऑफिस से कैब लेकर वापस घर आ गया ,रास्ते भर बम धमाको से जुड़ी बातें दिमाग में चलती रहीं ! बहुत बेचैनी हो रही थी , मैं सुबह की तरह फिर से बालकनी में आ गया , थोडी देर में बारिश भी शुरू हो गई , लेकिन अब बारिश की बूंदों में वो नमी नहीं थी जो दिल पर छाई उदासी की आग को ठंडा कर सके ! जेहन में कई सवाल चल रहे थे , पर जवाब एक भी नही था ! कभी अपने इंसान होने पर शर्म आई और कभी ये सोचा की किसी के झूठे जेहाद के लिए मासूमो को जान गँवानी पड़ती है ! क्यों हर बार आम इंसान को ही भुगतना पड़ता है ??, क्यों हर बार किसी मन्दिर ,मस्जिद और बाज़ार को ही निशाना बनाया जाता है ??मुझे तो यकीन हो चला है की ऊपर वाला भी हम इंसानों को बना कर पछता रहा होगा ! राज्य सरकार को इंटेलिजेंस ब्यूरो ने पहले से आगाह किया था ,लेकिन कोई भी सुरक्षा कदम नहीं उठाये गए ! अभी भी जेहन सवालों से भरा था ,पर जवाब एक भी नहीं था
हम अपनी संवेदनशीलता खोते जा रहे हैं , दूसरों की तकलीफ देखकर भी नही पिघलते और "जस्ट अनदर डे" कह कर आगे बढ़ जाते हैं , इंसान और इंसानियत का तो अब खुदा ही मालिक है !
Tuesday, July 22, 2008
शाम
होठों पे लिए मुस्कान और जलाये तारों के दीये ,
कभी यों लगता है मैं बना हूँ इसके लिए,
और ये बनी है सिर्फ़ मेरे लिए
गर तुम भी देख पाओ इन अंधेरों की रौशनी को,
तो जान जाओगे कि हर रौशनी जली है किसी अंधेरे के लिए
Monday, July 21, 2008
रात का वादा...
आज सोचा है मैंने की डूबते सूरज को सलामी देकर ,इक काली स्याह रात का वादा लूँगा,
रात जिसमें तारे भी हों, जुगनू भी और तुम भी,
जो बस बातों-बातों में ही कट जाए,
जो बस आंखों-आंखों में ही गुज़र जाए,
जिसके आगोश में हम हो जायें गुम,
जिसके अंधेरे में सहर की चाहत को भी भूलें हम,
जिसमे अधूरी रहे न कोई बात,
जो बरसे हम पर बनकर रिमझिम बरसात ,
इक ऐसी रात का वादा लूँगा
आज सोचा है मैंने की डूबते सूरज को सलामी देकर ,इक काली स्याह रात का वादा लूँगा,.......
Monday, July 7, 2008
सदियाँ बीती हैं!!
इंसानों को मरे तो सदियाँ बीती हैं ,
वो वक्त और था जब इन्सान हुआ करता था,
और उसकी शरीक-ऐ-हयात इंसानियत भी जिया करती थी ,
किसी इन्सान का इंसानियत का हाथ थामे तो सदियाँ बीती हैं
वो वक्त और था जब इन्सान की आंखों में हया थी ,
उसके दिल में चैन और रूह में सुकून भी था
वो इज्ज़त किया करता था सबकी,
और सबसे किया करता था प्यार,
पर इन्सान का हया से नाता तोड़े सदियाँ बीती हैं
वो वक्त और था जब इन्सान रिश्तों को मानता था ,
वो भाई ,बहन ,माँ,बाप और दोस्तों को पहचानता था,
पर इंसान का हर रिश्ते का गला घोंटे तो सदियाँ बीती हैं
वो वक्त और था जब इन्सान खुदा से डरता था,
उसके सजदे में झुकता था,
और किया करता था उसकी इबादत ,
पर आज इन्सान ही बन बैठा है खुदा,
और इंसानियत के खुदा को मरे तो सदियाँ बीती हैं
किसी सच्चे इन्सान को गर फिर से जिला सकूँ ,
उसके दिल में प्यार और आंखों में हया भर सकूँ,
तो अपनी जिंदगी को कामयाब समझूंगा,
पर इंसानियत को को जिलाने की इसी कोशिश में तो सदियाँ बीती हैं
Saturday, July 5, 2008
मैं
सारा जहाँ है इक कैनवस,मुझ दीवाने का,
खींचता रहता हूँ इसी कैनवस पर लकीरें,
कुछ बन जाती हैं तसवीरें,
कुछ रूप ले लेती हैं किसी अफ़साने का।
Tuesday, July 1, 2008
तू रोज़ नया.....
तू मारने की करती है कोशिश,और हम हँस के जिया करते हैं
Monday, June 30, 2008
सहर
हम दोनों आजाद हो जाते इस काली स्याह रात की गिरह से ,
खैर जाने भी दो ,
रात ही तो है,
रात का काला अँधेरा ही तो है ,
तेरे बगैर मुझे सहर से क्या सरोकार,
तेरे बगैर तो सबा भी लू लगती.